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अभी मत आना


अभी मत आना तुम


प्रतीक्षा के एकाकी क्षणों में
बारिश के ये सूक्ष्म कण
नुकीले तश्तर से चुभते हैं शरीर पर.
ये थकी उदास किरणें
बादलों में सेंध मारकर
पहुंच रही हैं घर के दरवाजे तक.
इंतज़ार में खुले किवाड़
बतियाते हैं आपस में
और हवा के साथ बंद हो जाते हैं.
पर तुम मत आना अभी.

अभी नहीं मिल पाएगी मुझे
तुम्हारे आने की खबर
अभी सारे खबरनवीस नशे में धुत्त पड़े हैं.
अभी मत आना तुम.
अभी तुम्हें तोहफे में
गुलाब नहीं दे पाऊँगा
अभी सारे बागवान
राजपथ पर फूलों की खेती करने में व्यस्त हैं.
अभी मत आना तुम.

अभी नहीं सुन पाऊंगा
तुम्हारी कोई भी बात
अभी इस शहर में नारों का शोर बहुत है.
अभी मत आना तुम.
अभी सारे पनिहारे
शहर की छाती से
मिटाने में लगे हैं जूतों के बदरंग निशान.
अभी मत आना तुम.

अभी बिखरी पड़ी है पन्नों पर
प्रेम और विद्रोह में उलझी मेरी कविता
खड़े हो जाने के इंतज़ार में.

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