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पेड़

 


पेड़

यहां मेरे घर के सामने बहुत से पेड़ हैं
मैं उन्हें बस पत्तों से पहचानता हूँ
उनकी गंध से पहचानता हूँ
उनसे टपके द्रव के धब्बों को पहचानता हूँ


मैं उनमें से किसी का नाम नहीं जानता.
जबकि छांव देते हैं ये भी, वैसे ही
वैसे ही बैठेते हैं पंछी इनपर
वैसे ही तने हैं ये भी धूप-बारिश और तूफान में

इस उष्ण, उमस भरे मौसम में भी
बचाये हुए हैं अपने हिस्से की हरियाली.
मैने कई दफे पड़ोसियों से पूछे हैं इनके नाम
किन्तु ऐसा कोई नहीं मिला

जो कि यह बताता कि इनके पत्ते खाकर
दूध ज्यादा देतीं हैं गायें
या इनकी जड़ों को घिसकर
बनाई जा सकती है कोई दवाई
या फिर इनकी छाल से बनता है कोई लेप

कोई नहीं जानता इन परदेसी पेड़ो के बारे में.
कभी-कभी सोचता हूँ कि कितने अभागे लोग हैं हम
कि जहां पैदा हुए वहां रह नहीं पाए
और जहां रह रहे हैं
वहां के पेड़ों तक को नहीं पहचानते.

-अशोक कुमार

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