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हसरतों के भंवर


 

मक़ाम आएगा ऐसा, ये ध्यान में भी न था ‎
कि अब तो साया किसी सायबान में भी न था ‎

वो हसरतों के भँवर भी ख़मोश थे अब तो ‎
बला का जोश वो दिल के उफान में भी न था ‎

बिखेर डाला था जिस ने वफ़ा का शीराज़ा ‎
वो लफ़्ज़ तो मेरे वहम-ओ-गुमान में भी न था ‎

अभी से किसने तख़य्युल के पर ये काट दिये ‎
अभी ख़याल तो ऊँची उड़ान में भी न था ‎

जो हौसलों की उड़ानों को ज़ेर कर डाले ‎
ये हौसला तो कभी आसमान में भी न था ‎

ये ख़ौफ़ कैसे दिलों में उतर गया "मुमताज़"‎
अभी तो तीर किसी की कमान में भी न था ‎



Written by Mumtaz Aziz Naza


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