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एक उदास सुबह

 



__एक उदास सुबह __



कितनी उदास है यह सुबह
पेड़, पंछी, पवन और पावस के बावजूद भी

कितना खालीपन है यहाँ.
गरजते मेघों, गिरती बूंदों

और खनकते पत्तों के बावजूद भी
यह कैसा सन्नाटा है.

रेशमी रश्मियों के साथ
उतर आया है गुनगुना उजाला

इस आर्द्र मौसम में-
यह कौन सी बर्फ है जो पिघलती ही नहीं.

सुर, संगीत, शोर और सन्नाटे के बीच
तुम्हारे मौन रहने से

उदास हो चली है पृथ्वी.
कोई गीत गुनगुनाओ
हंसो, मुस्कुराओ

और इन अनचाही रिक्तियों को भर दो.
अभी बदलने को है यह मौसम

बसंत आने से पहले
पृथ्वी का उदास हो जाना ठीक नहीं है.

--अशोक कुमार

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