तख़य्युल
तख़य्युल
ये बाब-ए-राज़-ए-उल्फ़त है ये खुलवाया नहीं जाता
मोअम्मा अब किसी सूरत ये सुलझाया नहीं जाता
मोहब्बत की नहीं जाती, मोहब्बत हो ही जाती है
कि दानिस्ता तो ये धोखा कभी खाया नहीं जाता
न जाने कैसी उलझन में हमें उलझा दिया उसने
करें क्या, ये भी अब उससे तो फ़रमाया नहीं जाता
अलम, रंज-ओ-मुसीबत, ग़म, अताएँ बेबहा उसकी
कि अब ये बेकराँ एहसाँ तो गिनवाया नहीं जाता
ये उस पे मुनहसिर है अब, समझ ले गर समझ पाए
अब अपना हाल-ए-दिल हमसे तो बतलाया नहीं जाता
ये दर्द-ओ-यास की दौलत हर इक दिल को नहीं मिलती
हर इक बत्न-ए-सदफ़ में तो गुहर पाया नहीं जाता
हक़ीक़त है, कि ये दुनिया भी इक हंगामा-ए-ग़म है
मगर कमबख़्त दिल को यूँ तो बहलाया नहीं जाता
करें क्या अर्ज़ अब "मुमताज़" क्या तारीफ़ है उसकी
तख़य्युल को मजाज़ी जिस्म पहनाया नहीं जाता
बाब-ए-राज़-ए-उल्फ़त – प्रेम के रहस्य का द्वार, मोअम्मा – पहेली, दानिस्ता – जान-बूझ कर, अलम - दुख, रंज-ओ-मुसीबत – दुख और विपत्ति, ग़म - दुख, अताएँ – भेंट, बेबहा – अनमोल, बेकराँ – अनंत, मुनहसिर – निर्भर, दर्द-ओ-यास – पीड़ा और दुख, बत्न-ए-सदफ़ सीप का पेट, गुहर – मोती, हक़ीक़त – सच्चाई, हंगामा-ए-ग़म – दुखों की भीड़, तख़य्युल – कल्पना, मजाज़ी – भौतिक
Written by Mumtaz Aziz Naza
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