कर्ब-ए-मुसलसल
कर्ब-ए-मुसलसल
तारीक फ़ज़ा में ये ज़िया दें तो किसे दें
हम अपने ख़यालों की शुआ दें तो किसे दें
झेलेगा भला ख़्वाबों की बेकार चुभन कौन
ये जलता हुआ ख़्वाबनुमा दें तो किसे दें
ये पेच जो रिश्ते के हैं सुलझाए भला कौन
इस उलझे तअल्लुक़ का सिरा दें तो किसे दें
अरमानों का ख़ूँ रंग अगर लाए तो कैसे
अरमानों का हम ख़ूनबहा दें तो किसे दें
चेहरे पे कई चेहरे लगाए हैं यहाँ लोग
हैरान हैं हम, दाद-ए-जफ़ा दें तो किसे दें
हर आँख पे मग़रूर शुआओं का है पहरा
हम राह के ख़ारों का पता दें तो किसे दें
इस आईनाख़ाने में हर इक चेहरा है अपना
"इस कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें"
रास आएगी "मुमताज़" किसे दर्द की इशरत
ज़ख़्मों की ये रंगीन क़बा दें तो किसे दें
तारीक – अंधेरा, फ़ज़ा – वातावरण, ज़िया – उजाले की किरण, शुआ – किरण, ख़्वाबों – सपनों, ख़्वाबनुमा – सपने दिखाने वाला (उपकरण), पेच – घुमाव, तअल्लुक़ – संबंध, अरमान – इच्छा, ख़ूँ – ख़ून, ख़ूनबहा – death penalty, दाद-ए-जफ़ा – अत्याचार की प्रशंसा करना, मग़रूर – घमंडी, शुआओं – किरणों, ख़ारों – काँटों, आईनाख़ाना – वह कमरा, जो दर्पणों से बना हो, कर्ब-ए-मुसलसल – निरंतर दर्द, इशरत – ऐश, क़बा – पोशाक
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