ग़ुबार
डूब तो जाते हम हालात के इस भंवर में
तलाशा जब दूर तलाक तो तेरा सहारा नज़र आया
सोचों पे जमी गर्द जब हटाई हमने आज
गुबार आलूद सही मगर नाम तुम्हारा नज़र आया
स्याही में मुश्तमिल थी मेरे रक़ीब
की पोशीदगी
सेहर हुई तो दोस्तों
में दुश्मन हमारा नज़र आया
कभी तो लड़ गया तमाम दुनिया से मैं तनहा मगर
कभी हाल ये के मैं खुद से भी हारा नज़र आया
उम्मीद की एक किरण भी आज लगी है मुझे यूँ के
मौसम खिज़ा था मगर
जश्ने बहारा नज़र आया
जीस्त से बेजार
रहा एक उम्र ये सच है मगर
ज़माना है के उसे अशफ़ाक़ तो आवारा नज़र आया
Post a Comment