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इंतज़ार



इंतज़ार






ये  मुमकिन  नहीं  मेरी आँख में कोई मंज़र ही न हो
और सीने  में छुपा  एक   गम  का  समंदर ही न हो

रूए ज़मी  से बेकरा  आस्मां तक अँधेरा  ही अँधेरा है
कहीं  ऐसा तो  नहीं  के  इस  रात  की सेहर ही न हो

अजब  हाल  है  इस शक में  जिये जाते  हैं रोज़ो शब
मिलते हैं जो लोग उन के सीने भी कही पत्थर ही न हो

मांग  तो   लेते हम के तुझे  लग  जाये  हमारी  भी उम्र
पर  क्या खबर के अगले  पल  में हमारी उमर ही न हो

बिछड़     के    मुझ   से   वह   खुश  तो  है   लेकिन
मेरी   इन  तन्हाईयों  की  शायद  उसे  खबर ही न हो

जिस  राह पे हमा-तन  तवज्जो  मुन्तज़िर हैं अशफ़ाक़
एक  उम्र  गुज़र जाये  और उसपे  तेरा गुज़र ही  न हो

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