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आरज़ू



आरज़ू






मेरी   किस्मत    में    ऐसी   भी    कोई   रात   हो
मेरे   आँगन   में   फिर   गम    की   बरसात    हो

चुभने  लगे  हैं  मेरी  आँखों   को  अब   ये  उजाले
ढल  भी  जा  ऐ शाम  के अंधेरों  से  मुलाकात  हो

एक  ज़माना  गुजरा  तेरी  मेरी   महफ़िल  सजे  हुए
प्यार न सही तकरार सही चलो अब तो कोई बात हो

उन फासलों का तकाज़ा  है जो अपने दरम्यान में हैं
किसी शक्ल में भी हो अपने मरासम की शुरुआत हो

जिन रक़ीबों के लिये दुआ में हाथ उठ जाते हैं अक्सर
क्या  पता  के   कब   कौन  गर्दिश  में   मेरे  साथ  हो

हमचश्मों ने गम को अक्सर बढ़ाय है तेरा नाम ले कर
वो    दर्द  भी  पर  प्यारा  लगे  जो  तेरी ही सौगात हो

जब    कभी   कूच  करूँ  दारे फानी से मैं अशफ़ाक़
कुछ    तो    गमज़दा   ऐ  काश   तेरी  भी  ज़ात  हो

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