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तड़प



तड़प






तुझ से अलग तुझ  से दूर जो तुझ से  जुदा  होगी
खुदा जाने के   वो  ज़िंदगी  भी  फिर  क्या  होगी

जिस   ज़िंदगी के  हर  रंग  में  शामिल रही है  तू
तसव्वुर     भी  मुश्किल है  क्या  तेरे  बिना  होगी

जिस चमन में भी रहे, कलियों  संग मुस्कराती रहे
मर भी गये तो टूटती साँसों में बस यही दुआ होगी

मैं  कर्ब-ए-फ़िराक में  मुब्तिला रहूँ  यूँ ही उम्र भर
मुझे बनाने वाले  मालिक की शायद यही रज़ा होगी

एक अश्क़ मैं तेरी  आँखों  में  देख लूँ मेरे नाम का
क्या  मेरी ख्वाहिश  भी कभी  पूरी  मेरे ख़ुदा होगी

निभा न सकी वो  वफ़ा  ये और  ही  बात  है लेकिन
न जाने क्यों यक़ीं नहीं आता मुझे के वो बेवफा होगी

शिकवा तो  है  पर ये खदशा भी लाहक है अशफ़ाक़
क्या   पता,   कितनी  मजबूर वो अपनी  जगह  होगी

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