आवारगी
फिर शहरगर्दी
में गुजरा दिन मेरा
फिर मेरी
आवारगी ने मुझे थकाया है
दर्द मेरी तन्हाइयों
का बड़ी शिद्दत से
आज फिर मेरी
आँखों में उतर आया है
शल हो गये मेरे हाथ ज़माने से जंग करते
हर कदम पे नये इम्तेहान ने आजमाया है
परछाई ने भी
अक्सर साथ छोड़ा है
मेरा
जिस दौरे गर्दिश का
था डर वही हमसाया है
मेरे शनासाओं ने ही दी है तोहमत मुझको
किस-किस का नाम लूँ हर शख्स ने रुलाया है
लहू लहू सा एक अश्क़ जो मेरी आँख में है
तमाम उम्र का
मेरी बस यही सरमाया है
ढेरों हैं संग-ए-राह
मेरे मुन्तज़िर अशफ़ाक़
मगर हर ठोकर
ने नया सबक सिखाया है
Post a Comment