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ग़मगुफीर

गम गुफीर






जाने  क्यों  आज   अपनी ज़िंदगी से बेज़ार हैं हम
खुद   अपनी    ही  मौत   के   तलबगार  हैं   हम

बड़े  गमगुफीर  हैं   एहबाब  मेरे  हाल  को  देख
कैसे   समझायें    किस    दर्द  के शिकार हैं हम

जा   बजा    मुन्तशिर    हैं    मेरे  दर्द    के  निशाँ
फ़ज़ा    को   अफ़सुर्दा कर जाये वो बयार  हैं हम

क़रार   पाने  को  सेहरा का रुख भी  किया  हमने
बस्तियों  में  फिरते रहे अब तक वो बेक़रार हैं हम

सुकूत   को    तोड़ती   मेरे  लाशऊर की ये चीखें
हमेशा  से  अनसुनी कर देने  के गुनहगार  हैं हम

एक   बार   ही  कह    देते   वो    झूठ   ही  सही
ख़ामोशी   के  साथ   मिट जाने को  तैयार  हैं हम

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