किताब
कई अनपूछे सवालों
का मैं जवाब रहा हूँ
मुझे पता है
कई निगाहों का ख्वाब रहा हूँ
कई हाथों से
गुज़री, कई निगाहों ने देखा है
समझ न सका कोई
जिसे मैं वो किताब रहा हूँ
पढ़ने की कोशिश
तो बहुतों ने की है मुझे
मुझे यकीं है खुद
को छुपाने में कामयाब रहा हूँ
अक्सर मेरे मिजाज़ की तन्क़ीद एहबाब में हुई है
शिकायतों का मरकज़ भी जाने क्यों बेहिसाब रहा हूँ
बारहा कोई खलिश
मुज़्तरब कर जाती है मुझको
अक्सर पलों में दर्दो अलम का
सैलाब रहा हूँ
जाने किस चुभन में
कराहते हैं रोज़ो शब अशफ़ाक़
जिसे चुभते
हैं अपने
ही खार वो गुलाब रहा हूँ
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