Header Ads

वहशत



वहशत

 






किन्हीं  वहशत के  लम्हों में जाने तो दिया तुझे
सोच  रहे   हैं मगर   तेरे   बाद  करें   तो   क्या

तुझे   भूलने   की  हर  कोशिश मैंने कर  डाली
अब  इससे  ज्यादा  दिल को बर्बाद करें तो क्या

अश्कों  में  लिपटे  हुए  बंद हों ठों में क़ैद हैं जो
उन   बेजान  कहकहों  को आज़ाद करें तो क्या

मेरे  मालिक  के  दर पे   भी   सुनी  गयी जो
तेरे     दर   पे आके वो  फरियाद करें तो   क्या

गुलों  में  शादाबियत    रही गुलशन  की जब
मसनवी  बुतों से  महफ़िल आबाद करे तो क्या

खुद  ही  तो  तुझको  खुद  से   दूर   किया  है
अशफ़ाक़  अगर  अब  तुझे याद करे  तो क्या

No comments