वहशत
किन्हीं वहशत के लम्हों में जाने तो दिया तुझे
सोच रहे हैं मगर
तेरे बाद करें तो क्या
तुझे भूलने की हर
कोशिश मैंने कर डाली
अब इससे ज्यादा
दिल को बर्बाद करें तो क्या
अश्कों में लिपटे हुए बंद हों ठों में क़ैद हैं जो
उन बेजान कहकहों
को आज़ाद करें तो क्या
मेरे मालिक के दर
पे भी न सुनी गयी जो
तेरे दर पे आके वो फरियाद करें तो
क्या
गुलों में शादाबियत
न रही गुलशन की जब
मसनवी बुतों
से महफ़िल आबाद करे तो क्या
खुद ही तो तुझको खुद
से दूर किया है
अशफ़ाक़ अगर अब
तुझे याद करे तो क्या
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