नाराज़गी
हमकदम था जो अब गुमशुदा कहां हो गया वो शख्स
एक मोड़ ये भी आया के अलग सा हो गया वो शख्स
उसकी खफगी
के मायने हमने न तलाशे कहीं
किसी ने पूछा तो कह दिया के बुरा हो गया वो शख्स
वफ़ा के पाबंद
तो कभी हम भी न रह सके
अब किस मुंह से कह
दे के बेवफा हो गया वो शख्स
आँख में बसा
रखा रखा था काजल बना कर जिसे
आंसू की तरह बह
कर जुदा हो गया वो शख्स
मेरे वजूद में शामिल रहा,
कल तक था जो हमराह
आज बजाते
खुद अलग रास्ता हो गया वो शख्स
पढ़ता था जिसे नमाज़ समझ कर
अशफ़ाक़
फिर यूँ हुआ के हमसे खफा हो गया वो शख्स
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