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आदत



आदत




तेरे तसव्वुर में खो  जाने  को  हम आदत कहते हैं
उस उन्स को जो मेरे  सीने में  है  इबादत कहते हैं

कुछ  रेशमी   एहसास मुझे   हर  दम  गुदगुदाते  हैं
इन एहसासों की गुदगुदाहट को हम चाहत कहते हैं

जिस   जज़्बे  को  मैंने  नाम  दिया  है  मुहब्बत  का
उसे    ही   मेरे एहबाब  मेरी  बुरी  हालत  कहते  हैं

तेरी    पलकों   की  छावं में कुछ  पल  का  ठहरना
इन लम्हात को ही हम गरीब तो  इस्तराहत कहते हैं

झुकती  निगाहों के  साथ  नरम  तबस्सुम  का  सितम
हम  अफगारे इश्क़ इस अदा को भी शरारत कहते हैं

रूबरू   होने    पे  उनके  ज़ुबान  छोड़ देती है साथ
साहिबे    किरदार हैं  हम  इसे  भी शराफत कहते 

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