तमाशा
यूँ एक और ख्वाब का इख्तेताम हुआ
के दर्दो ग़म का
फिर से इंतेज़ाम हुआ
न शम्शीरें खनकी न खंजर चले
पर मेरा तो
काम तमाम हुआ
हसरतें बुझी तो कुछ हौसले सिमटे
एक और फसाना
यूँ नाकाम हुआ
कुछ टीस बनी तो कुछ कसक बढ़ी
लो एक दर्द
का और इन्तेजाम हुआ
हर फर्द हँसा
है मुझपे आज
मेरे इश्क़
का चर्चा यूँ आम
हुआ
आशिक़ बने दीवाने भी हुए
बेवफा भी अब मेरा नाम हुआ
तोहमत भी दी
रुस्वा भी किया
और तमाशा यह
सरशाम हुआ
ऐसी उम्मीद न थी अशफ़ाक़
मुझे
इस इश्क़ में जो
मेरा अंजाम हुआ
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