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आंसू



आंसू






बेज़ुबाँ   हो   कर  भी   ये   आंसू  बात  करते  हैं
बड़ी   सादगी  से बयां  दिल के  हालात  करते हैं

छलक   पड़ते    हैं  अक्सर   उन्हीं   के   सामने
छुपाने   को    जिनसे  हम  एहतियात  करते   हैं

सलीका    हो   जो अश्क़ो  की  ज़ुबाँ समझने का
तो    ठहरे    हुए    आंसू   भी    बात   करते   हैं

भीगी पलकों के संग मुस्कराने में भी एक अदा है
जब   होंठ  मुस्कराये और आंसू फरयाद करते हैं

ज़रूरी  नहीं  के  हर अश्क़ का रिश्ता गम से हो
ये  वो  साथी हैं जो मुसर्रतों का भी  साथ करते हैं

उनसे उन  की ही आरज़ू छुपायें कैसे अशफ़ाक़
ये  आंसू   ही  हैं  जो बेपर्दा मेरे ज़ज़्बात करते हैं

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