बचपन
ख्वाहिशें आज भी कई चिट्ठियां लिखती हैं
कोमल ,मासूम बचपन के नाम
पर सारी चिट्ठियां लौट आती हैं वैरन
ख्वाहिशों को कहां पता है
अब बचपन उस पते पर नहीं रहता
बदल गया है उसका पता ठिकाना
पुराने पते पर कैसे ढूँढें..?
कहाँ ढूँढें...?
किस से पूछें...??
कहाँ गुम गया बचपन का पता...?
वो पवन सा अल्हड मस्ती ...!
वो स्वछंद कलकल बहती
नदियों सी रवानियां...!!
खेत खलिहानों में खट्टी मिठी
सखियों संग किए शैतानियां...!
कुछ भी तो नहीं मिलते इस पते पर...!
मिलेगें भी कैसे....??
छोङ आई थी तन्हां
सुनसान राहों पर बचपन को
साथ लाई जिम्मेवारियों को
कल तक ...
बेटी थी ,बहन थी ,सखी थी किसी की
अब ...
बहू हूँ, पत्नी हूँ और
एक जिम्मेदार माँ भी तो हूँ न
समय के साथ पहचान हीं तो बदल गई
तो बताईए...
चिट्ठियां तो लौटनी हीं थी पर
मैं भी लौटना चाहती हूँ गाहे बेगाहे
बचपन के पते पर
जीना चाहती हूँ खुद के लिए पल दो पल
खिलखिला कर हँसना चाहती हूँ
कन्धों पर पङे जिम्मेवारियों को
घर के किसी ताखे पर रख कर
पल भर के लिए हीं सही
स्वतन्त्र सपनों की दुनिया में
पंख फैला कर उङना चाहती हूँ
ख्वाहिशें तुम लिखना फिर से
एक चिट्ठी मेरे बचपन के नाम...
Post a Comment