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बलात्कार

 



जब जिस्म का बलात्कार हो रहा होता है
तब सिर्फ जिस्म का ही नहीं ...
रूह और आत्मा का भी बलात्कार हो रहा होता है
जब हम बेटियों की अस्मिता लुट रही होती
जिस्म को नोंचा जा रहा होता है
हमारे साथ अमानवीय घटना घट रही होती
जिस्म से खून बह कर सङक पर
फैल कर दरिंदगी की साक्ष बन रहा होता
तब हमारी आत्मा का भी बलात्कार हो रहा होता है साहब...!!
जब अधमरी अवस्था में अग्नि के हवाले कर रहे होते हो तब ...
हमारे जिस्म के साथ सुनहरे सपनें
हमारे अरमान भी धू धू कर
जल रहा होता है साहब...!!
कई बार हम इन दरिंदो से बच भी जातीं हैं
हास्पिटल में हमारे जिस्म पर मरहम
पट्टी किया जा रहा होता है पर
मेडिकल साइंस ने ऐसी कोई दवा नहीं बनाई
जो हमारे हौसलों के बलात्कार का इलाज कर सके ...!!
चलो हम बच कर घर भी आ गए पर
बलात्कार जारी है साहब...!!
शब्द शब्द बलात्कार करते हैं जब...
घर से लेकर कोट के कटघरे में
घटिया से घटिया सवाल पूछा जाता है
हर बार बलात्कार का शिकार
हम लडकियाँ और महिलाएं ही होतीं हैं
जरा सोचिए...!!
क्या ये हमारे आत्मसम्मान का बलात्कार नहीं है
जब हम कामकाजी, नौकरी पेशा लोगों से
ये पूछा जाता ...
कौन था वो...??
किस से बातें कर रही थी...??
क्यों आया था...??
कहाँ थी अभी तक ...??
आप के ये प्रश्न हमारे आत्मसम्मान का
बलात्कार हीं तो करते हैं साहब...!!
बलात्कारी सिर्फ वो नहीं हैं
जो हमारे जिस्म को गिद्ध की तरह नोचते हैं
बलात्कारी वो भी हैं जो
हमारी पवित्रता पर,हमारी अस्मिता पर
गिद्ध की नजर रखते हैं साहब ...!!
वो हमारे घर में,परिवार में और
समाज में भी हो सकते हैं
हमारी सहनशीलता का
बलात्कार मत करो साहब ...!!
अपनी मानसिकता को बदलो और
हमें सम्मान से आत्मविश्वास से जीने दो ...

Written by Bandna Pandey

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