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प्रेम और पराक्रम

 


प्रेम समर्पण है
प्रेम में हम हार कर भी जीत जाते
पराक्रम में जीत कर भी हार जाते
एक प्रेम कई लोगों के दिलों को जीत लेता
पराक्रम को कई लोगों को हराना पङता
प्रेम और पराक्रम का सब से बेहतरीन
उदाहरण यशोदा नन्दन कृष्ण हैं
मिले राधा से कृष्ण थे
एक बार स्वर्ग में अन्यास
देख सकुचाए कृष्ण थे
राधा हर्षित इठलाई
सजल नयन से पूछ रहे थे राधा से एक सवाल
कहो राधा रीतेपन की अपना हाल
जब जब यादें तेरी आई
मुझे दिया रूलाए
क्या बिछङ कर तेरे नैना आँसू थे बहाए
बोली राधा विह्वल हो कर
सम्मुख कृष्ण के आए
तुम मेरे कण कम में हो
सांसो और थङकन में हो
अगर बिछङ जाते तुम मुझ से
मैं हो जाती निष्प्राण
सजल नैयन में कृष्ण तुम्हें रखी मैं सम्भाल
डर था कहीं आँसूअन संग न जाओ बाहर निकल
करती है संबोधन कृष्ण को
राधा कह कर द्वारिकाधीश
सुन कानन से कृष्ण को दिल पर पङे अघात
मैं तो तेरा श्याम हूँ, मुरलीधर चीतचोर
क्षोभ भरी स्वर में कहती राथा
अब न तुम ब्रजवासी कान्हां
अब नहीं तुम माखन चोर
तुम तो हो प्रराकर्मी राजा ,तुम हो द्वारिकाधीश
कारी कारी यमुना मैया की मिठे जल को छोङ
वस गए खारे सागर के तीर
प्रेम धून अब नहीं बजाते
दसो ऊंगलियों से बंसी थाम
एक ऊँगली पर सुदर्शन चक्र चलाते
दिखाते हो पराक्रम
तुम रासरचईया थे ,करते थे सब से प्रेम
कहो फिर कैसे माधव तुम प्रेम में हो गए शून्य
राजा तो पालन हार है होता
करता है प्रजा से अथाह प्रेम
फिर बोलो तुम अपनी हीं नारायणी सेना का
कैसै करवाया था संहार
जब से बने पराकर्मी राजा
क्या हो गए हो हृदय विहीन
क्या आज कौस्तुभ हो गए हैं ,उत्तर हिन
हृदय विदीर्ण हो रहा माधव का
खङे थे मौन अपनाए
यही तो है प्रेम
जिस में होता सिर्फ समर्पण का भाव
गीता में देखो राधा दूर दूर नहीं दिखती
फिर भी उसके समापन पर
सब कहते ...राधे ...राधे
मंदिरों में भी द्वारिकाधीश कहाँ होते
ब्रज वाले ही कृष्णा राधा के साथ खङे मिलते
ढाई आखर प्रेम में हीं तो सृष्टि की सार

Written by Bandna Pandey

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