मन की बात
आओ आज कुछ ऐसा लिख दूं
अपनी मन की बात कहूं
कविता लिखूँ कुछ ऐसी जो
शब्द शब्द मन की खोले भेद
अम्बर से अवनि बोले ...
अपने मन की खोले भेद
सुनो अम्बार....
मैं तङप रही ,सूरज की किरणों से झुलस रही
अमर प्रेम अम्बार, अवनि की
पल में समझा पीङा अवनि की
झट से मेघों को भेजा संदेश
रिमझिम बरसने को दिया आदेश
तृप्त होकर अवनि बोली अम्बार से
क्षितिज पर मैं तुमसे मिले आऊँगी
सुकोमल कलियाँ बोली भंवरे से
मैं अपनी घूंघट न खोलूंगी
तुम नटखट ,चंचल भंवरे
पराग ,परिमल ले उङ जाते हो
प्रेम जताते हो तुम मुझ से
बोलो ये कैसी प्रीत निभाते हो
अकुलाई सृष्टि बोली पवन से
शीतल, समीर तुम भी आओ
तेरे बिन मैं निपट अधूरी
तुम मेरी सांसो में बस जाओ
चाँद चकोर की प्रेम कहानी
सूरज सब को बतलता
मैं हूँ तपता जलता सूरज
देखो चकोर तुम भ्रम में न फंसना
अस्तित्व तुम्हारा मिट जाएगा
मुझ से तुम दूर ही रहना
प्रेम परवान जब चढता पतंगो का
दीपक में जा कर जल जाता है
बिस्किट चाय की अजब दिवानी
चाय में डूब कर रह जाती है
प्रेम, विराग ,श्रृंगार लिख दूं
या घोल दूं मैं कोई रस
क्या मैं भी भेद खोल दूं
बोलो न ...
लिख दूं मन की अनुराग
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