सृजन
हर्फ हर्फ आते हैं मिलने ,मेरी भावनाओं से
बिखरे बिखरे शब्दों को भरती हूँ अंजुरी में
गुथती हूँ मनोभाव से
तब ...
बनती है कोई कविता
निर्जन मन रेगिस्तान की एकांत में
बैठता है ,तकता है सन्नाटों को
तब ...
स्फूटित होते हैं सृजन के भाव
हृदय में उबलते सवालों के साथ
लेती हूँ एक प्याली कङक
अदरक वाली चाय
उसकी हर घूंट के साथ डालती हूँ
अपनी रचनाओं में स्वाद
तब ...
सुबह सी ताजी लगती है कविताएं
अन्तस के तबे पर जब शब्दों को
देती हूँ सुगढ आकार
तब...
लिख पाती हूँ, उष्ण तप्त एहसास
रसोई में लिपटी हुई ,आंटे ,मशालों और
सब्जियों की महक से चुरा लेती हूँ थोङी खुशबू
तब...
महक उठती हैं जायकों के साथ रचनाएँ मेरी
हर बार वो नहीं होता ,जो हम चाहते हैं
कभी समय का खेल ,तो कभी नसीब का
पर जो है ,जैसा है ...
करती हूँ कोशिश कुछ बेहतर देखने की
तब...
डाल पाती हूँ कविताओं में सकारात्मकता
तमाम व्यस्तताओं को देती हूँ ,छुट्टी की अर्जी
गौरैया बन यादों का पंख लगा
बैठ जाती हूँ पीहर की मुंडेर पर
बेपरवाह सी करती हूँ मनमानियां
थोङी बचपन वाली गलतियाँ
जो...
दिख जाती है अक्सर मेरी रचनाओं में
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