हसरत
जंग जब तूफ़ाँ से हो तो क्या किनारा देखना
बैठ कर साहिल पे क्या दरिया का धारा देखना
माँगते हैं ख़ैर तेरी सल्तनत में रात दिन
देखना, बस इक नज़र ये भी ख़ुदारा देखना
ये तुम्हारा क़हर तुम को ही न ले डूबे कहीं
तुम ज़रा अपने मुक़द्दर का इशारा देखना
क्या बताएँ, किस क़दर दिल पर गुज़रता है गरां
बार बार इन हसरतों को पारा पारा देखना
हौसलों को भी सहारा हो किसी उम्मीद का
ऐ नुजूमी मेरी क़िस्मत का सितारा देखना
बारहा “मुमताज़” नम कर जाता है आँखें मेरी
मुड़ के हसरत से हमें उसका दोबारा देखना
ख़ुदारा – ख़ुदा के लिए, क़हर – बहुत तेज़ ग़ुस्सा, गरां – भारी, पारा पारा – टुकड़े टुकड़े, नुजूमी – ज्योतिषी
Written by Mumtaz Aziz Naza
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