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माटी तू अनमोल


 


माटी तू कितनी अनमोल
है छुपा तुझमें कुछ ऐसा

जिससे जीवन है सारा
न तू सिर्फ जीवन देती

बोझ भी तू ढोती सबका
हो जंगल विरल या सघन

या पर्वत की पूरी श्रृंखला
या नदी अविरल,अविनाशी

या समंदर धीरज वाला
तृण से लेकर दरख़्त तक

सभी की शान तुम्हीं से है
जलचर,थलचर जीव सभी

या इंसान पापी,पुण्यात्मा
ठौर पाते तेरी आँचल में

सृष्टि की तू ऐसी धरोहर
तुझ सा न ब्रह्मांड में पूरा

माटी का ये घर अपना
माटी का ही बना चूल्हा

बनी बोरसी माटी की ही
माटी के ही हम सब पुतले

छोड़ एक दिन ये जग सारा
कल माटी में है मिल जाना।।

Written by Usha Kumari



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