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वह यह कहती है

 



वो कहती है!

मुझे चूड़ियां बंधन नहीं लगती पहनने दो न। और मैं हार जाता हूं। वो कहती है! घूँघट नहीं पल्लू रखने दो मैं सम्मान देना चाहती हूं और मैं हार जाता हूं। वो कहती है! मुझे व्रत करना है, यह तुमसे प्रेम का एहसास दिलाता है। और मैं हार जाता हूं! वो पूजा के बाद! मेरे पांव छूकर... मुझसे आशीर्वाद मांगती है। और मैं हार जाता हूं। मैं अपनी हार पर! हर बार सोचता हूं कि ऐसा क्यों है...? कि आसानी से चुन लेती है स्त्री प्रेम के नाम पर अधीनता और सम्मान के नाम पर सारे बंधन........।

Written by Ashok Kumar

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