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ईमान






ईमान





ढूँढता  हूँ   मगर   कहीं    ईमान   नहीं   मिलता
कहाँ खो गया शराफत का सामान नहीं  मिलता

सोचा के किसी   ईमान  वाले से  जा   कर  पूछूं
क्या  करुँ  ऐसा  भी  कोई इंसान  नहीं  मिलता

कितनी  दिखायी  देती हैं  दाढ़ियाँ  हिलती  हुई
इनके पीछे कौन  चेहरा  बेईमान  नहीं  मिलता

कोई  बचाये  कुफ्र  ने  मुझे   जकड़   रखा   है
अब तो धर्म क्या कुफ्र क्या पहचान नहीं मिलता

अजब  वक़्त  है  टीवी  तो आँखों  के  सामने  है
और जाने कहा  है घर में  क़ुरान  नहीं  मिलता

शैतान तो मेरे अंदर  बैठा  हंस  रहा  है ज़ालिम
किस मुंह से कहूं  के मुझे शैतान  नहीं  मिलता

दुनिया से दिल हटा के अल्लाह   से  लौ लगाऊं
लोग तो इतने हैं किसी में ये अरमान नहीं मिलता

इंसा  हूँ मैं  भी  औरों  की  तरह  और  ढूँढता  हूँ
कहाँ गया अल्लाह वालों का  जहाँ  नहीं  मिलता

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