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कुछ अफ़साने


कुछ अफ़साने
 




कुछ लोग  होते  हैं जो रक़ीब लगा नहीं करते
सच ये भी है के वो दोस्त भी हुआ नहीं  करते

कुछ  अफ़साने हैं  जो आँखों से  बयां  होते हैं
हर एहसास  को  होंठों   से कहा  नहीं  करते

हाँकुछ  दरीचे हैं  रोशनयादों  से  महकते
यह  वो लम्स हैं जो हाथों से छुआ  नहीं  करते

शनासाओं  की  भीड़ में कुछ रक़ीब  भी तो हैं
पर शुक्र है वो दोस्तों की तरह दगा नहीं करते

बुझा   दे    कोई अर्श  के   इन  सितारों   को
शबे   हिज्र   है  दोस्तों,    चरागा  नहीं   करते

जिनके  लिये  छोड़  दिया  हमने   यह ज़माना
उन्हीं  को है शिकायत के हम वफ़ा नहीं करते

वो मिल गया  तो क्या  किस्सा-ए-फ़िराक कहें
ख़ुशी  के  लम्हों   को  यूँ   बेमज़ा  नहीं  करते

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