कर्ब-ए-मुसलसल तारीक फ़ज़ा में ये ज़िया दें तो किसे दें हम अपने ख़यालों की शुआ दें तो किसे दें झेलेगा भला ख़्वाबों की बेकार चुभन कौन ये जलता...Read More
मैं जितना देह में था उतना ही देह से बाहर रहा जुलूसों में कुचला नारों में उछला झंडों में फड़फड़ाया और अंत में बीड़ी के धुयें में धुंआ होकर छाती ...Read More